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संचार प्रतिरूप का महत्व बताइए? importance of communication models in hindi

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  संचार प्रतिरूप का महत्व (importance of communication models)        संचार प्रतिरूप का महत्व संचार प्रतिरूपों के मूल्यांकन की कई पद्धतियां प्रचलित हैं, साथ ही कई प्रतिरूप लोकप्रिय भी हैं। अलग-अलग प्रतिरूपों की संरचना और उसकी धारणा अलग-अलग होती है। जन माध्यमों की दुनिया में इन प्रतिरूपों को एक फिनोमिना के रूप में देखा जाता है। एक फिनोमिना के रूप में देखने के कारण इन प्रतिरूपों की अपनी विशिष्टता एवं सापेक्ष स्वायत्त प्रक्रिया होती है। इसी विशिष्टता एवं सापेक्ष स्वायत्तता में ही जन संचार माध्यमों के अर्थ भी निहित होते हैं। जन संप्रेषण, प्रतिरूपों में संप्रेषक, संदेश और ग्रहिता ये तीन मुख्य तत्व है। इनके विभिन्न रूपों, चरित्रों और अर्थ की खोज का काम ही इन प्रतिरूपों का लक्ष्य है। सामान्यतया जन संचार माध्यमों की गतिविधियों का अध्ययन करते समय आन्तर एवं अन्तवैयक्तिक संचार, संरचना, संगन आन्तरिक प्र वाह आदि की उपेक्षा की जाती है। "जन संचार वस्तुतः एक प्रक्रिया है जो अन्य प्रकार के संचार के साथ संवाद संबंध बनाते हुए संप्रेषण करता है। संचार प्रतिरुपों का अध्ययन करने पर इनमें उभयनिष्ठ

प्रतिरूप की सीमाएं समझाइए? Limitations of models in hindi

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  प्रतिरूप की सीमाएं (Limitations) प्रतिरूप की सीमाएं अच्छे न्यादर्श की निम्नलिखित सीमाएं हैंं- 1. न्यादर्श में स्थायित्व होता है। एक बार न्यादर्श बन जाने के बाद यह मान लिया जाता है, कि वह न्यादर्श हमेशा क्रियाशील रहेगा। विश्व की परिस्थितियों के परिवर्तन के अनुरूप न्यादर्श के स्वरूप में परिवर्तन नहीं होने से उनकी शुद्धता, मौलिकता और प्रभाव में कमी आ जाती है। 2. न्यादर्श निर्माणकर्ता को सामान्यता उपरोक्त बात का पता रहता है फिर भी वे इन कमियों को दूर करने का प्रयास नहीं करते हैं जिससे कमियां बढ़ती हैं। 3. न्यादर्श के उपयोग में शुद्धता लाने के लिए, वस्तुनिष्ठता‌ का होना आवश्यक होता है फिर भी न्यादर्श निर्माता मानव ही होते हैं और इसके मानवीय दृष्टिकोणों के कारण वस्तुनिष्ठता प्रभावित होती है। 4. एक ही न्यादर्श सभी उद्देश्यों के लिए लागू नहीं होते। अलग-अलग उद्देश्यों के लिए अलग-अलग न्यादर्शों की आवश्यकता होती है। 5. प्रायः सभी न्यादर्श अपूर्ण होते हैं। ऐसा कोई भी नहीं है जो हर उद्देश्य को पूर्ण कर सके। अधुनातन न्यादर्श का प्रयोग करना ज्यादा अच्छा होता है वस्तुतः संचार के न्यादर्श के

प्रतिरूप के प्रकार बताइए? Types of communication Model

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प्रतिरूप के प्रकार (Types of Model) प्रतिरूप के प्रकार  संचार प्रतिरूप या संप्रेषण प्रतिरूप को संचार विशेषज्ञों ने अपने-अपने अनुसार भिन्न-भिन्न वर्गों में विभाजित किया है। कुछ प्रमुख वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार हैं- प्रथम वर्गीकरण प्रथम वर्गीकरण निम्नानुसार है- 1. संरचनात्मक न्यादर्श (Structural Model) 2. प्रकार्यात्मक प्रतिरूप (Functional Model) संरचनात्मक न्यादर्श (Structural Model) इस प्रकार के न्यायाधीश में सिर्फ न्यादर्श की संरचना बनाकर विषय को अभिव्यक्त किया जाता है। उदाहरण- भवन निर्माण के लिए अभियंता नक्शा बनाकर योजना प्रस्तुत करता है। नक्शा में भवन की रूपरेखा निश्चित हो जाती है। इसमें किसी परिणाम को कोई स्थान नहीं दिया जाता। इसी प्रकार संचार के संबंध में भी संचार प्रक्रिया किस प्रकार होगी, उसका स्वरूप कैसा होगा आदि के संबंध में मॉडल बनाया जाता है। उसका परिणाम कैसा होगा इसका निर्धारण नहीं किया जाता। प्रकार्यात्मक प्रतिरूप (Functional Model) इस प्रकार के प्रतिरूप में विषय की प्रक्रिया का प्रारंभ से अंत तक प्रस्तुतीकरण किया जाता है। विषय की योजना, प्रक्रिया, कार्य, उपयोग

संचार/ संप्रेषण प्रतिरूप के कार्य क्या हैं? Functions of communication model in hindi

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  संचार/ संप्रेषण प्रतिरूप के कार्य (Functions of communication model) संचार/ संप्रेषण प्रतिरूप के कार्य  प्रत्येक संप्रेषण प्रक्रिया को हम देख नहीं सकते, उसे स्पर्श भी नहीं कर सकते, किंतु समझ सकते हैं। समझने की प्रक्रिया में न्यादर्श सहायक होता है। सिद्धांतों की रचना करने में भी यह सहायक होता है। ड्यूस्क ने न्यादर्श के प्रमुख निम्नलिखित चार कार्य बताए हैं- संगठित करना (Organising) प्रतिरूप तथ्यों एवं आं कड़ो को एकत्रित कर एक व्यवस्थित एक में सजाता है, अर्थात किस तत्व को कहा, किस रूप में रखना है? उन तत्वों के आपसी संबंधों का निर्धारण करना और उसे उसी रूप में प्रस्तुत करने का काम इसके द्वारा होता है। स्वतः अन्वेषण संबंधी कार्य (Heuristic) प्रतिरूप में ऐसी प्रणाली होती है, कि उसके द्वारा नए तथ्यों की खोज करने में सहायता मिलती है। अनुमान योग्य बनाना (Predictivity) प्रतिरूप से भविष्य की संभावित परिस्थितियों का अनुमान भी लगाया जाता है। यदि प्रतिरूप में स्पष्ट व्याख्या की गई है, तो ही अनुमान लगाने की संभावना बनती है। मापन संबंधी कार्य (Measuring function) विषय के स्तर के निर्धारण मे

संचार/संप्रेषण के प्रतिरूप बताइए? model of communication in Hindi

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  संचार/संप्रेषण के प्रतिरूप (model of communication) प्रतिरूप- अर्थ एवं परिभाषा संचार/ संप्रेषण के प्रतिरूप संचार/संप्रेषण के संबंध में विभिन्न परिभाषा समाज शास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों एवं अभियंताओं ने पृथक-पृथक रूपों से प्रतिरूप प्रस्तुत किए हैं। यह न्यादर्श अमूर्तरूप में व्यवहार के अनिवार्य लक्षणों की पुनरावृत्ति करते हैं। ऐसे अनेक न्यादर्श हैं, जो मानव संप्रेषण का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करते हैं। इन प्रतिरूपों में कुछ तो सरल हैं, किंतु कुछ जटिल भी हैं। संप्रेषण को जब हम मानव अंतःक्रिया की प्रक्रिया के रूप में देखते हैं, तो हमें उसे संदेश देने, एक से दूसरे के पास संदेश प्रेषित करने, संदेश ग्रहण करने वाले क्रियाकलापों तक सीमित करने की अपेक्षा इसमें एक आयाम संयुक्त करना पड़ता है। इन प्रतिरूपों की शब्दावली भी भिन्न-भिन्न होती है।  ड्यूस्क (Deutsch) ने 1952 ई. में संचार के प्रतिरूप को परिभाषित करते हुए लिखा कि, "प्रतिरूप प्रतीकों एवं नियमों को क्रियान्वित करने वाली एक संरचना है जो कि एक अस्तित्व संरचना या प्रक्रिया में समान गुणों वाले बिंदुओं के संग्रह को प्रासंगिक रूप से प्

शाब्दिक संचार क्या है? What is verbal communication in Hindi

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संचार माध्यमों के विकास क्रम सदियों पुराना है, जिसमें माना गया है कि शुरुआत में मनुष्य अपनी भाव भंगिमाओं, संकेतों, प्रतीकों और चिन्हों के माध्यम से संचार करता था, जिसे अशाब्दिक संचार कहते थे। तत्कालीन मानव के पास स्वर और आवाज तो थी, परंतु उनके पास शब्द नहीं थे। जिसके फलस्वरूप मानव अशाब्दिक संचार करने लगा। जैसे-जैसे शब्दों का अविष्कार होता गया मानव ने अशाब्दिक संचार के साथ-साथ शाब्दिक संचार भी करना सीख लिया। शाब्दिक समाचार शाब्दिक संचार (verbal communication) जो संदेश शब्दों के माध्यम से दिया जाता है उसे शाब्दिक संचार कहते हैैं। इस विधि में भाषा का प्रयोग होता है, ताकि दूसरा व्यक्ति यह सभी उपस्थित व्यक्ति समझ सके। शाब्दिक संचार भी दो प्रकार का होता है- 1. मौखिक संचार 2. लिखित संचार मौखिक संचार (oral communication) मौखिक संचार में भाषा द्वारा आदान-प्रदान होता है। इसके साथ ही चेहरे के हाव-भाव, इशारे आदि का प्रयोग भी होता है। टेलीफोन, वीडियो, रेडियो, टेलीविजन, वॉइस-मेल, इंटरनेट आदि से भी यह संचार होता है। मौखिक संचार आवाज की गति, पिच, शब्दों के साफ उच्चारण और मॉड्यूलेशन से प्रभावित होता है

अशाब्दिक संचार/ सांकेतिक संचार क्या है? अशाब्दिक संचार के प्रकार what is non-verbal communication

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अशाब्दिक संचार/ सांकेतिक संचार (Non-verbal communication) जो संदेश चिन्हों संकेतों तथा सूचित चिन्ह द्वारा भेजा जाता है उसे 'अशाब्दिक संचार' कहते हैं। प्राचीन काल में अधिकांश संदेश संकेतों एवं चिन्हों के द्वारा ही दिए जाते थे। उस समय संचार के इतने साधनों का विकास नहीं हुआ था। संप्रेषण के इतने विकसित माध्यम आ जाने के बाद आज भी अशाब्दिक संप्रेषण का महत्व बना हुआ है। अनेक बार जो विचार हम हजारों शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते, वह मात्र एक संकेत चित्र, हाव-भाव द्वारा कुछ पलों में ही संप्रेषित हो जाते हैं। अर्थात् बिना शब्द का प्रयोग किए या भाव भंगिमा के प्रयोग से या शारीरिक हाव-भाव के माध्यम से जिस प्रकार संचार करते हैं, उस संचार को अशाब्दिक संचार कहते हैं क्योंकि इसमें संचार के लिए शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता। विशेषज्ञों के अनुसार मानव के बीच होने वाले समस्त संचार का लगभग 80% अशाब्दिक होता है। अशाब्दिक संचार का उपयोग उन लोगों द्वारा भी किया जाता है, जो दृष्टिहीन है या बोल नहीं सकते। रेमण्ड एवं जान के अनुसार, "संप्रेषण के बीच सभी माध्यम अशाब्दिक संप्रेषण में सम्मिलित होते ह

परंपरागत संचार क्या है? (traditional communication in hindi) परंपरागत माध्यम और लोकमाध्यम से परिचय।

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  परंपरागत संचार (traditional communication) परंपरागत संचार का तात्पर्य ऐसे संचार से है जो, वर्तमान जनसंचार माध्यमों की अपेक्षा परंपरागत माध्यमों से किया जाता हो। परंपरागत संचार सदियों से ज्ञान, लोक न्याय और संवाद के मंच के तौर पर प्रयोग होता आया है। सभी समाज परंपराओं में रचे बसे अनेक ऐसे माध्यमों के जरिये संचार करते हैं जिनमें निहायत देसज और ग्रामीण प्रतीकों-संकेतों को उपयोग में लाया जाता है। परंपरागत संचार का, जनसंचार माध्यमों से उलट जनता से निजी नाता होता है। परंपरागत या लोक माध्यम आम लोगों के दिलो और दिमाग से जुड़े होते हैं, इसलिए उनका असर भी व्यक्तिगत और गहरा होता है। इसके अलावा उनका कथ्य, शैली स्थानीय बोली भी संचार को ज्यादा सहज बनाती है। वहीं, देशव्यापी दृष्टि से देखें तो परंपरागत संचार और लोक कला समग्र रूप से अकेला जनसंचार माध्यम है, जिनकी जड़ें इस देश की बहुसंख्यक आबादी की परंपरा और अनुभवों से जुड़ी है। उदाहरण के रूप में सभी प्रकार की लोक कथा, लोक नृत्य, लोक गीत, लोक नाटय विधाएं, तमाशा, पावदा अथवा पालवा, कीर्तन, यक्षगान, दशावतार, नौटंकी, रामलीला और रासलीला, जात्रा, भवाई

संचार (Communication) क्या है?, संचार के प्रकार, संचार प्रक्रिया

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संचार हमारा मौजूदा समय सूचना युग, संचार युग और अब साइबर या नेटवर्क युग के नाम से पुकारा जाता है। अपने मूल उद्देश्य से संचार शब्द ने खासा लंबा सफर तय कर लिया है। संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन शब्द का समानार्थी है, इसका पहले पहल यातायात के साधन के रूप में प्रयोग किया गया बाद में अब यह प्रसारण से जुड़ गया। मूलतः कम्युनिकेशन शब्द लैटिन भाषा की संज्ञा कम्युनिस और क्रिया कम्युनिकेयर से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'टू मेक कॉमन' या 'साझा करना'।  जब दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई जानकारी साझा करने के लिए, मिलने-जुलने के लिए, खाने के बारे में बात करने के लिए, मेले में या दुख के क्षण में आदि के लिए एक दूसरे से संपर्क करते हैं, तो उसे संचार कहते हैं।  वास्तव में, संचार एक घटना नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक साझेदारी है। यहां तक कि अपने आप से बात करना, दैवीय शक्तियों या उनके विभिन्न रूप से बात करना, आत्माओं की दुनिया या अपने पूर्वजों से विचारों अथवा भावनाओं को साझा करना भी संचार की परिधि में आ जाता है। संचार के प्रकार (Types of communication) संचार को कई प्रकार से वर्गीकृत किया