संचार (Communication) क्या है?, संचार के प्रकार, संचार प्रक्रिया

संचार

हमारा मौजूदा समय सूचना युग, संचार युग और अब साइबर या नेटवर्क युग के नाम से पुकारा जाता है। अपने मूल उद्देश्य से संचार शब्द ने खासा लंबा सफर तय कर लिया है। संचार शब्द अंग्रेजी के कम्युनिकेशन शब्द का समानार्थी है, इसका पहले पहल यातायात के साधन के रूप में प्रयोग किया गया बाद में अब यह प्रसारण से जुड़ गया।

मूलतः कम्युनिकेशन शब्द लैटिन भाषा की संज्ञा कम्युनिस और क्रिया कम्युनिकेयर से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'टू मेक कॉमन' या 'साझा करना'। 

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई जानकारी साझा करने के लिए, मिलने-जुलने के लिए, खाने के बारे में बात करने के लिए, मेले में या दुख के क्षण में आदि के लिए एक दूसरे से संपर्क करते हैं, तो उसे संचार कहते हैं। 

वास्तव में, संचार एक घटना नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक साझेदारी है। यहां तक कि अपने आप से बात करना, दैवीय शक्तियों या उनके विभिन्न रूप से बात करना, आत्माओं की दुनिया या अपने पूर्वजों से विचारों अथवा भावनाओं को साझा करना भी संचार की परिधि में आ जाता है।


संचार के प्रकार (Types of communication)


संचार को कई प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। उदाहरण के रूप में शाब्दिक और निशब्द संचार, तकनीक और गैरतकनीकी संचार, मध्यस्थ और सीधा संचार, सहभागी और सहभागिताहीन संचार आदि। इस विभाजन का लक्ष्य है- संचार की अत्यंत जटिल प्रक्रिया को सरल बना कर प्रस्तुत कर देना।


अंतः वैयक्तिक संचार

इस संचार के अंतर्गत व्यक्ति स्वयं से ही संचार करता है। ध्यान, ईश्वर से वार्ता, पूर्वजों से बात आदि इसी के विविध प्रकार हैं। धर्म इस प्रकार के संचार को खास महत्व देता है।

अंतः वैयक्तिक संचार


अंतरवैयक्तिक संचार

यह संचार दो व्यक्तियों के बीच में होता है। यह बिना किसी व्यक्ति की मध्यस्थता के साथ संपन्न होता है। यह आत्मीय, सीधा और निजी संचार है, जिसमें पर्याप्त परस्पर संवाद के साथ शब्दों और भाव भंगिमाओं का साझा संभव है।

व्यक्तिगत प्रभाव की दृष्टि से यह समूह और जनसंचार से ज्यादा असरदार है। कारण यह है कि, इस संसार में मानवीय निकटता और मनुष्य की पांचों इंद्रियों का प्रयोग होता है।

अंतरवैयक्तिक संचार


समूह संचार

जब दो से अधिक व्यक्ति आपस में भावनाओं और विचारों का आदान प्रदान करते हैं, तो उसे समूह संचार कहते हैं। समूह संचार में भी उपरोक्त गुण होते हैं पर अपेक्षाकृत कम मात्रा में।

जैसे-जैसे समूह का आकार बड़ा होता जाता है, आत्मीय संबंधों की संभावना उतनी ही कम होती जाती है। वास्तव में, समूह का आकार बढ़ने के साथ ही संचार अधिकतर एकपक्षीय होने लगता है, और फीडबैक प्राप्त करना और उसका विश्लेषण करना कहीं ज्यादा कठिन हो जाता है।

समूह संचार


जनसंचार

किताबों, सिनेमा, प्रेस, रेडियो और इंटरनेट आदि साधनों के जरिए समूह संचार का दायरा बेहद विशाल होकर जनसंचार में तब्दील हो चुका है। जनसंचार दो शब्दों के मेल से बना है जन् अर्थात जनता और संचार मतलब किसी बात को आगे बढ़ाना, चलाना या फैलाना। अर्थात् यदि हम किसी विचार या जानकारी को किसी भाषा के माध्यम से जन समूह तक पहुंचाते हैं, तो इस प्रक्रिया को जनसंचार कहते हैं।

जनसंचार


संचार के तत्व/घटक (Elements of communication)

एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक विचार या सूचना प्रवाहित करने और उसे उसी ढंग में समझने की प्रक्रिया, संचार है। संचार की प्रक्रिया में छः आधारभूत तत्वों से मिलकर बनी है। यह तत्व निम्न प्रकार हैं- 


संचारक

संचारक वह व्यक्ति होता है जो संचार प्रक्रिया की शुरूआत करता है। इसे संचारकर्ता, सम्प्रेषक, प्रेषक, संवादक, स्रोत, कम्युनिकेटर, सेंडर, एनकोडर, संदेश देने वाला आदि भी कहा जाता है। 


संदेश

विचार, भावना, सुझाव, दिशा-निर्देश, आदेश या कोई भी ऐसी सामग्री जिसे संप्रेषित करने का सोचा जा सकता है, वह संदेश है।

प्राय: सन्देश लिखित या मौखिक शब्दों के माध्यम से अन्तरित होता है। परन्तु अन्य सन्देश कुछ अशाब्दिक संकेत जैसे हाव-भाव, शारीरिक मुद्रा, शारीरिक भाषा आदि के माध्यम से भी दिया जाता है। 


माध्यम

माध्यम से तात्पर्य उन साधनों से होता है जिसके द्वारा सूचनाये स्रोत से निकलकर प्रापक तक पहुँचती है।

माध्यम, एक मार्ग है जिसके जरिए प्राप्तकर्ता को प्रेषक द्वारा संदेश दिया जाता है। समाचार पत्र, टेलीविजन चैनल, रेडियो, वेब पोर्टल्स, ई-मेल, फैक्स, टेलीप्रिंटर, मोबाइल इत्यादि संचार के अत्याधुनिक माध्यम हैं।


प्रापक

प्रापक से तात्पर्य उस व्यक्ति से होता है, जो सन्देश को प्राप्त करता है। अर्थात् स्रोत से निकलने वाले सूचना को जो व्यक्ति ग्रहण करता है, उसे प्रापक कहते हैं। प्रापक की जिम्मेदारी होती है, कि वह सन्देश का उचित अर्थ ज्ञात करके उसके अनुरूप कार्य करे। 

प्रापक को संग्राहक, ग्रहणकर्ता, प्राप्तकर्ता, रिसीवर, डिकोडर आदि नामों से जाना जाता है।


प्रतिपुष्टि/फीडबैक

प्रतिपुष्टि प्रापक द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। जो संचार प्रक्रिया के पूरी होने पर दी जाती है। जब स्रोत को प्रापक से प्रतिपुष्टि की प्राप्ति होती है, तब वह अपने द्वारा संचारित सूचना के महत्व और प्रभावशीलता को समझ पाता है। 


शोर

शोर से तात्पर्य उन बाधाओं से होता है, जिसके कारण स्रोत द्वारा दी गयी सूचना को प्रापक अनावश्यक शोरगुल या अन्य कारणों से ठीक ढ़ग से ग्रहण नहीं कर पाता है। जिससे संचार की प्रभावशीलता कम हो जाती है। 


संचार की प्रक्रिया (Process of communication)

संचार प्रक्रिया

संचारक वह व्यक्ति है जो संचार प्रक्रिया को शुरू करता है, और फिर संप्रेषित किये जाने वाले संदेश की एन्कोडिंग करता है। 

संदेश शाब्दिक या अशाब्दिक दोनों प्रकार से हो सकता है या कोई लिखित तथ्य, प्रतीक चिन्ह हो सकता है। माध्यम वह है जिसके द्वारा संदेश को प्रापक तक पहुँचता‌ है। 

प्रापक वह है जो संदेश प्राप्त या ग्रहण होने पर उसकी डिकोडिंग करता है और उसकी व्याख्या करता है।

संदेश ग्रहण करने के बाद प्रापक संदेश के प्रति अपनी प्रतिपुष्टि देता है अर्थात् अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। 

इसके अलावा शोर वह है जो सम्पूर्ण संचार प्रक्रिया को प्रभावित करता है अतः संचार प्रक्रिया एक सतत प्रक्रिया है जो इन घटकों से होकर गुजरती है।



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