परंपरागत संचार क्या है? (traditional communication in hindi) परंपरागत माध्यम और लोकमाध्यम से परिचय।
परंपरागत संचार (traditional communication)
परंपरागत संचार का तात्पर्य ऐसे संचार से है जो, वर्तमान जनसंचार माध्यमों की अपेक्षा परंपरागत माध्यमों से किया जाता हो। परंपरागत संचार सदियों से ज्ञान, लोक न्याय और संवाद के मंच के तौर पर प्रयोग होता आया है। सभी समाज परंपराओं में रचे बसे अनेक ऐसे माध्यमों के जरिये संचार करते हैं जिनमें निहायत देसज और ग्रामीण प्रतीकों-संकेतों को उपयोग में लाया जाता है।
परंपरागत संचार का, जनसंचार माध्यमों से उलट जनता से निजी नाता होता है। परंपरागत या लोक माध्यम आम लोगों के दिलो और दिमाग से जुड़े होते हैं, इसलिए उनका असर भी व्यक्तिगत और गहरा होता है। इसके अलावा उनका कथ्य, शैली स्थानीय बोली भी संचार को ज्यादा सहज बनाती है।
वहीं, देशव्यापी दृष्टि से देखें तो परंपरागत संचार और लोक कला समग्र रूप से अकेला जनसंचार माध्यम है, जिनकी जड़ें इस देश की बहुसंख्यक आबादी की परंपरा और अनुभवों से जुड़ी है।
उदाहरण के रूप में सभी प्रकार की लोक कथा, लोक नृत्य, लोक गीत, लोक नाटय विधाएं, तमाशा, पावदा अथवा पालवा, कीर्तन, यक्षगान, दशावतार, नौटंकी, रामलीला और रासलीला, जात्रा, भवाई, थेरुकूथु, कठपुतली, नुक्कड़ नाटक आदि परंपरागत माध्यम या लोकमाध्यम की श्रेणी में आते हैं।
परंपरागत माध्यम/ लोक मध्यम (traditional medium)
तमाशा
तमाशा महाराष्ट्र का जीवंत लोकनाट्य है, जिसका इतिहास करीब 400 साल पुराना है। यह एक व्यवसायिक मनोरंजन है, जिसमें कलाकार अपनी बात नृत्य, वार्तालाप, और गीत के रूप में रखते हैं। तमाशा का आरंभ उच्च स्वरों में समूह गान से होता है, जिससे जनता को कहानी की विषयवस्तु का अंदाजा मिल जाए। इसके बाद धीरे-धीरे लावणी और पावदा की मदद से कहानी की परतें खुलती जाती हैं।
लावणी मूलतः फसल से जुड़ा नृत्य है, लेकिन तमाशा में इसका प्रयोग प्रेम, विरह, पुनर्मिलन और कई बार तो सामाजिक संदेशों को अभिव्यक्त करने के लिए किया जाता है।तमाशा (picture credit- lallantop) |
पावदा और पावला
पावदा और पावला लोक नृत्य नाटिका है, जिसमें 16वीं सदी में लोकप्रियता का शिखर छू लिया था। यह प्रकृति से नाटकीय है, और ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में जनश्रुतियों पर आधारित है।
इसमें ठप, टुनटुनी, मंजीरा की संगत में एक गीत होता है, जिसमें एक स्वर प्रभावी होता है। गाते समय समूह का नेतृत्वकर्ता नाटकीय हाव-भाव के जरिये नायक के कारनामों का वर्णन करता है, और समूह गान के जरिए समां बंधा रहता है।
कीर्तन
कीर्तन, हरिकथा या हरिकीर्तन एक पात्र पर आधारित वह नाटक है, जिसमें एक प्रतिभाशाली कलाकार विभिन्न चरित्रों की पूरी श्रृंखला और उनके हाव-भाव प्रस्तुत करता है। मान्यता है कि नारद मुनि ने इसे पहले पहल प्रस्तुत किया जिसके बाद यह लोकप्रिय होता गया।
यह भी विश्वास किया जाता है कि करीब डेढ़ सौ साल पहले इसका विस्तार महाराष्ट्र से कर्नाटक, तमिलनाडु में हुआ। भक्ति काल के संतो ने इसे लोकप्रिय बनाया। यह इतना शक्तिशाली सिद्ध हुआ कि, लोकमान्य तिलक ने कहा था कि- 'यदि में पत्रकार ना होता तो कीर्तनकार होता।'
कीर्तन (picture credit- hindustan) |
यक्षगान
यक्षगान कर्नाटक का लोकप्रिय लोकनाट्य है, जिसकी प्रथम प्रस्तुति सोलवीं सदी में हुई। इसकी कथावस्तु भागवत पर आधारित है पर इसमें स्थानीयता का पर्याप्त पुट है।
अन्य भारतीय लोकनाट्यों की तरह इसमें गीत और वाक्य चातुर्य का पर्याप्त समावेश होता है। वाचक यहां भागवत कहता है जो पदों का गान करता है एवं साथ अन्य भागीदारों पर रोचक टिप्पणियां करता है। इसके अलावा एक विदूशक, हनुमान्यक, दैत्य, राजा आदि होते हैं।
यक्षगान |
दशावतार
दशावतार दक्षिण कोंकण का लोकनाट्य है। मान्यता है 400 साल पहले एक धर्मगुरु गोरे ने इसे आरंभ किया था। यह भगवान विष्णु के 10 अवतारों और विष्णु भक्तों के कथानकों का वर्णन है। इसमें महिला किरदारों का अभिनव भी पुरुष करते हैं, एवं हर वर्ग के लोग इसमें भागीदारी करते हैं।दशावतार |
नौटंकी
नौटंकी उत्तर भारत की लोक नाट्यकला है, जिसका प्रदर्शन खुले मंच पर होता है। अन्य लोककलाओं की तरह नौटंकी का ढांचा बहुत सरल होता है। नौटंकी में कई अंक होते हैं, जिन्हें एक सूत्रधार पिरोता है। कथानकों के तौर पर पौराणिक कहानियां और लोक कथाएं जैसे लैला-मजनू, अमर सिंह राठौर के किस्से और सुल्ताना डाकू आदि नौटंकी में पेश किए जाते हैं।
नौटंकी (picture credit- Wikipedia) |
रामलीला और रासलीला
रामलीला रामकथा को नाटकीय रूप से प्रस्तुत करती है, जबकि रासलीला राधा-कृष्ण प्रेम पर आधारित नृत्य नाटिका है। रामलीला सितंबर-अक्टूबर में दशहरे के दौरान पूरे उत्तर भारत में खेली जाती है, जबकि रासलीला विभिन्न अवसरों पर वृंदावन, गुजरात, महाराष्ट्र और केरल में होती है।रामलीला (picture credit- Patrika) |
जात्रा
बंगाल और उड़ीसा के लोक नाट्य जात्रा यानी की यात्रा का उद्भव अज्ञात है, परंतु मान्यता है कि यह नाम घुमंतू परंपरा से जन्मा है। आरंभ में जात्रा ने कृष्ण और राधा के प्रसंग का प्रसार कर भक्ति आंदोलन और बाद में शाक्त संप्रदाय को सशक्त किया। साथ ही जात्रा का इस्तेमाल राजनीतिक संदेश देने के लिए भी किया गया।
हालांकि कथावस्तु कुछ भी रही हो जात्रा का मूलस्वरूप और शैली यथावत रही- आवाज का उतार-चढ़ाव, गीत-संगीत और अभिनय का अनूठा तालमेल।
जात्रा (picture credit- Wikipedia) |
भवाई
भवाई गुजरात का प्राचीन लोकनाट्य है। अपनी खास शैली के लिए जाने जाने वाले इस मध्ययुगीन लोकनाट्य में रंगलो, नाइक और कई अन्य पात्र होते हैं। भवाई का संगीत मुख्यता शास्त्रीय होता है। भजन, दोहे, गरबा, ग़ज़ल, इसे और समृद्ध बनाते हैं। इसके अलावा गुजरात के लोक नृत्य गरबा का गरिमापूर्ण नृत्य और अन्य अनगिनत रंगों से सजी वेशभूषा अनूठा दृश्य पैदा करते हैं।भवाई (picture credit- IWMBuzz) |
थेरुकूथु
थेरुकूथु तमिलनाडु के पारंपरिक लोकमाध्यमों में सबसे अहम माना जाता है। जो नाटक-नाटकम्, गद्य-इयाल, संगीत-इसाई को करीब ले आता है। यह नंदीनाटकम् और विल्लूपट्टू से विकसित माना जाता है।
अन्य भारतीय लोक कलाओं की तरह तमिल नुक्कड़ नाटक भी पौराणिक और लोक कथाओं से कथानक लेता है। मौजूदा दौर में यह कला संगीत नाटक के तौर पर विकसित हो रही है जो मंच के साथ पर्दे पर भी असर दिखा रही है।
थेरूकूथु |
कठपुतली
कठपुतली सदियों से बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का मनोरंजन करती आई है भारत में 4 तरह की कठपुतली कला प्रचलित है।
कठपुतली |
1. सूत्रधारिका:-
इसमें धागे के सहारे से कठपुतलियों को नियंत्रित किया जाता है। राजस्थान, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में यह काफी ज्यादा प्रचलित है।
2. छड़ कठपुतली:-
छड़ कठपुतली को पश्चिम बंगाल में पुतल नाच के नाम से जाना जाता है और उन्हें जात्रा शैली के परिधान पहनाये जाते हैं। यह आकार में बड़ी और संचालक के कमर से बंधी बांस की छड़ियों से जुड़ी होती हैं।
3. छाया पुतली:-
यह आंध्रप्रदेश में थोहू बोम्मालुट्टा, कर्नाटक में तोगालू, काम्बे अट्टा, केरल में थोलपावा और उड़ीसा में रावण छाया के नाम से काफी प्रचलित हैं। इन्हें पर्दे पर पीछे से प्रकाशित करते हैं, जिससे छाया पारदर्शी सूती कपड़े पर उभर जाती है। इनके जरिये रामायण और महाभारत की कहानियां प्रभावी ढंग से कही जाती हैं।
4. हस्त पुतली:-
यह कला उड़ीसा, केरल और तमिलनाडु में काफी प्रचलित है। कठपुतली संचालक अपने हाथों का इस्तेमाल करके इन्हें बेहद जीवंत कर देता है, जो अन्यत्र संभव नहीं है। हस्तपुतली केरल में कथकली की वेशभूषा पहनती है। उड़ीसा में से संचालित करने वाला कलाकार साथ-साथ नगाड़ा भी बजाता है।
नुक्कड़ नाटक
80 और 90 के दशक में भारत में नुक्कड़ नाटक का विस्फोट सा हुआ। एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में 7000 से ज्यादा नुक्कड़ नाटक समूह हैं, इनमें से अधिकांश पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। इसमें शिरकत करने वाले लोगों में सोशल एक्शन ग्रुप, स्वास्थ्य और कृषि प्रसार कर्मी, छात्र समूह, राजनीतिक दल, धार्मिक सुधारक और महिला संगठन रहते हैं।
यह भी देखा गया है कि नुक्कड़ नाटक स्थानीय कलाओं जैसे नृत्य, संगीत और स्थानीय भाषा को अपने में समाहित कर लेते हैं। दिल्ली, मुंबई, ग्रामीण आंध्र, केरल और महाराष्ट्र के नुक्कड़ नाटक समूह, महिला शोषण, गरीबी, भेदभाव, अशिक्षा और बेरोजगारी जैसी समस्याओं पर ध्यान खींच रहे हैं। वहीं केरल में साक्षरता और वैज्ञानिक सोच के प्रसार में नुक्कड़ नाटक ने अहम भूमिका निभाई है।
नुक्कड़ नाटक |
Good one
जवाब देंहटाएंExplain Advocacy journalism
जवाब देंहटाएंपत्रकार सखी👌
जवाब देंहटाएंसंप्रेषण को समझाइए
जवाब देंहटाएंकठपुतली को अच्छा समझाया आपने
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