अशाब्दिक संचार/ सांकेतिक संचार क्या है? अशाब्दिक संचार के प्रकार what is non-verbal communication
अशाब्दिक संचार/ सांकेतिक संचार (Non-verbal communication)
जो संदेश चिन्हों संकेतों तथा सूचित चिन्ह द्वारा भेजा जाता है उसे 'अशाब्दिक संचार' कहते हैं।
प्राचीन काल में अधिकांश संदेश संकेतों एवं चिन्हों के द्वारा ही दिए जाते थे। उस समय संचार के इतने साधनों का विकास नहीं हुआ था। संप्रेषण के इतने विकसित माध्यम आ जाने के बाद आज भी अशाब्दिक संप्रेषण का महत्व बना हुआ है। अनेक बार जो विचार हम हजारों शब्दों में व्यक्त नहीं कर पाते, वह मात्र एक संकेत चित्र, हाव-भाव द्वारा कुछ पलों में ही संप्रेषित हो जाते हैं।
अर्थात् बिना शब्द का प्रयोग किए या भाव भंगिमा के प्रयोग से या शारीरिक हाव-भाव के माध्यम से जिस प्रकार संचार करते हैं, उस संचार को अशाब्दिक संचार कहते हैं क्योंकि इसमें संचार के लिए शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता।
विशेषज्ञों के अनुसार मानव के बीच होने वाले समस्त संचार का लगभग 80% अशाब्दिक होता है। अशाब्दिक संचार का उपयोग उन लोगों द्वारा भी किया जाता है, जो दृष्टिहीन है या बोल नहीं सकते।
रेमण्ड एवं जान के अनुसार, "संप्रेषण के बीच सभी माध्यम अशाब्दिक संप्रेषण में सम्मिलित होते हैं, जो न तो लिखित हों और न ही मौखिक शब्दों में व्यक्त हों।"
अशाब्दिक संचार निम्नलिखित प्रकार से होता है-
शारीरिक भाषा
शरीर और इसके विभिन्न हिस्सों को काफी कुछ संंचारित करने के लिए प्रयोग किया जाता है। शरीर के अलग-अलग हिस्सों के माध्यम से होने वाले इस संसार को शारीरिक भाषा का नाम दिया जाता है।
शारीरिक भाषा के अतिरिक्त विभिन्न अवसरों पर कपड़ों का पहनावा, लोगों से अभिवादन करने का तरीका, बातें करने के दौरान हाथों का प्रयोग, और बात करते समय सामने वाले व्यक्ति से भौतिक दूरी, यह सब चीजें अशाब्दिक संचार का ही हिस्सा हैं।
स्पर्श
मनुष्य और जानवरों के बीच बहुत संपर्क के लिए स्पर्श ही सबसे अहम प्रक्रिया है। किसी स्थान विशेष पर जोर देने, किसी को पकड़ने, शांत करने (पीठ थपथपाना), आश्वासन देना (कई बार यह काम अपने आप के साथ भी करते हैं) जैसे कामों के लिए मनुष्य एक दूसरे को स्पर्श करते हैं। बच्चों के स्वास्थ्य विकास के लिए स्पर्श अति आवश्यक है।
बैठने की शैली व चाल
हम किस तरीके से खड़े होते हैं ,बैठने की मुद्रा कैसी है, और चाल कैसी है, यह सभी चीजें हमारी शारीरिक व मानसिक स्थिति को दर्शाती हैं। उत्तेजित मनोदशा में व्यक्ति सीधा और अकड़ कर बैठता या खड़ा होता है, बचाव की मुद्रा में आदमी के कंधे व सिर झुका झुका कर खड़ा होता है, चिंता की अवस्था में व्यक्ति हाथ पीछे बांधकर धीरे-धीरे चल रहा होता है।
व्यक्तित्व
अंतरव्यैक्तिक व समूह संचार में हमारे प्रदर्शन पर हमारे बाह्यस्वरूप का काफी असर पड़ता है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति का बाहरी स्वरूप काफी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यही व्यक्ति का 'पहला प्रभाव' बनाता है।
आज जबकि सारा दिन विज्ञापनों में कुछ सुंदर व्यक्तित्वों को सुई से लेकर जहाज तक की मशहूरी के लिए हमारे सामने रखना शुरू कर दिया है तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अच्छा दिखने के लिए हमें अपने बाहरी व्यक्तित्व को भी सुधारना होता है।
वेशभूषा
वेशभूषा हमारे व्यक्तित्व के प्रति लोगों को काफी कुछ दिखा देती है। किसी की उम्र, रुचि, दृष्टिकोण इत्यादि चीजों में वेशभूषा से साफ पता चल जाती हैं। कपड़ा कितना पुराना है, किस हालत में है, और किस फैशन का है, इन सब चीजों से किसी व्यक्ति के जीवन स्तर का भी एहसास हो जाता है। वेशभूषा दिखाती हैं कि, व्यक्ति समाज में आ रहे परिवर्तनों के साथ चल रहा है या नहीं।
निकटता
अब यह तो हम समझ ही चुके हैं कि शब्दों, शारीरिक भाव भंगिमाओं इत्यादि के माध्यम से हम लोग संचार करते हैं। इनके अतिरिक्त स्थान का प्रयोग करके भी हम लोग संचार कर सकते हैं। हम विभिन्न लोगों और वस्तुओं के साथ बात करते वक्त अलग-अलग भौतिक दूर रखते हैं। रिश्तो के आधार पर यह दूरी तय होती है। संचार के दौरान प्रतिभागियों की दूरी के अध्ययन को 'प्रॉक्सेमिक्स' कहा जाता है।
Nice blog..really helpfull..need more these type of stuffs 💖
जवाब देंहटाएंKnowledgeable 👍
जवाब देंहटाएंBahut acha likha hai dekh kar aesa lag raha. Padhunga to mcu ki yaad ayegi isliye ye step skip kar raha👌
जवाब देंहटाएंएक अच्छी पहल है आप के द्वारा ईश्वर से प्रार्थना करूंगा की आप को और आगे बड़ने के लिए मार्गदर्शन दे और आप के इस काम में किसी भी प्रकार की बाधा न आए राधे राधे
जवाब देंहटाएंNice blog...................
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ब्लॉग
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी में तारतम्यता
भावभंगिमा
कलाकारियाँ
दृष्टिगत हैं।
आशा है कि
इस ब्लॉग को पढ़कर निश्चित तौर पर
बिन बोले समझने की कला विकसित होगी।
जुटे रहो������